बहुव्रीहि समास | उदाहरण सहित | bahuvrihi samas
बहुव्रीहि समास | उदाहरण सहित | bahuvrihi samas
bahuvrihi samas kise kahate hain: जिस समास के समस्तपदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं हो एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की और संकेत करते हैं। उसे बहुव्रीहि समास कहेंगे! जैसे-
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
- लम्बोदर ≈ लम्बे उदर (पेट) वाला, परन्तु लम्बोदर सामास मे अन्य अर्थ होगा ≈ लम्बा है उदर जिसका वह(गणेश)
- अजानुबाहु ≈ जानुओँ (घुटनोँ) तक बाहुएँ हैँ जिसकी वह(विष्णु)
- आशुतोष ≈ वह जो आशु (शीघ्र) तुष्ट हो जाते हैँ(शिव)
- पंचानन ≈ पाँच है आनन (मुँह) जिसके वह(शिव)
- वाग्देवी ≈ वह जो वाक् (भाषा) की देवी है(सरस्वती)
- युधिष्ठिर ≈ जो युद्ध मेँ स्थिर रहता है(धर्मराज) (ज्येष्ठ पाण्डव)
- षडानन ≈ वह जिसके छह आनन हैँ(कार्तिकेय)
- अजातशत्रु ≈ नहीँ पैदा हुआ शत्रु जिसकाकोई व्यक्ति विशेष
- वज्रपाणि ≈ वह जिसके पाणि (हाथ) मेँ वज्र है(इन्द्र)
- मकरध्वज ≈ जिसके मकर का ध्वज है वह(कामदेव)
- रतिकांत ≈ वह जो रति का कांत (पति) है(कामदेव)
- सप्तऋषि ≈ वे जो सात ऋषि हैँ(सात ऋषि विशेष जिनके नाम निश्चित हैँ)
- त्रिवेणी ≈ तीन वेणियोँ (नदियोँ) का संगमस्थल(प्रयाग)
- पंचवटी ≈ पाँच वटवृक्षोँ के समूह वाला स्थान(मध्य प्रदेश मेँ स्थान विशेष)
- रामायण ≈ राम का अयन (आश्रय)(वाल्मीकि रचित काव्य)
- पंचामृत ≈ पाँच प्रकार का अमृत(दूध, दही, शक्कर, गोबर, गोमूत्र का रसायन विशेष)
- चक्रधर ≈ चक्र धारण करने वाला(श्रीकृष्ण)
- पतझड़ ≈ वह ऋतु जिसमेँ पत्ते झड़ते हैँ(बसंत)
- दीर्घबाहु ≈ दीर्घ हैँ बाहु जिसके(विष्णु)
- पतिव्रता ≈ एक पति का व्रत लेने वालीवह स्त्री)
- चारपाई ≈ चार पाए होँ जिसके(खाट)
- विषधर ≈ विष को धारण करने वाला(साँप)
- अष्टाध्यायी ≈ आठ अध्यायोँ वाला(पाणिनि कृत व्याकरण)
- तिरंगा ≈ तीन रंगो वाला(राष्ट्रध्वज)
- अंशुमाली ≈ अंशु है माला जिसकी(सूर्य)
- महात्मा ≈ महान् है आत्मा जिसकी(ऋषि)
- वक्रतुण्ड ≈ वक्र है तुण्ड जिसकी(गणेश)
- दिगम्बर ≈ दिशाएँ ही हैँ वस्त्र जिसके(शिव)
- घनश्याम ≈ जो घन के समान श्याम है(कृष्ण)
- प्रफुल्लकमल ≈ खिले हैँ कमल जिसमेँ(वह तालाब)
- एकदन्त ≈ एक दंत है जिसके(गणेश)
- नीलकण्ठ ≈ नीला है कण्ठ जिनका(शिव)
- पीताम्बर ≈ पीत (पीले) हैँ वस्त्र जिसके(विष्णु)
- कपीश्वर ≈ कपि (वानरोँ) का ईश्वर है जो(हनुमान)
- वीणापाणि ≈ वीणा है जिसके पाणि मे(सरस्वती)
- महावीर ≈ महान् है जो वीर(हनुमान व भगवान महावीर)
- लोकनायक ≈ लोक का नायक है जो(जयप्रकाश नारायण)
- महाकाव्य ≈ महान् है जो काव्य(रामायण, महाभारत आदि)
- अनंग ≈ वह जो बिना अंग का है(कामदेव)
- देवराज ≈ देवोँ का राजा है जो(इन्द्र)
- हलधर ≈ हल को धारण करने वाला
- शशिधर ≈ शशि को धारण करने वाला(शिव)
- वसुंधरा ≈ वसु (धन, रत्न) को धारण करती है जो(धरती)
- त्रिलोचन ≈ तीन हैँ लोचन (आँखेँ) जिसके(शिव)
- वज्रांग ≈ वज्र के समान अंग हैँ जिसके(हनुमान)
- शूलपाणि ≈ शूल (त्रिशूल) है पाणि मेँ जिसके(शिव)
- चतुर्भुज ≈ चार है भुजाएँ जिसकी(विष्णु)
- दशमुख ≈ दस है मुख जिसके(रावण)
- चक्रपाणि ≈ चक्र है जिसके पाणि मेँ ( विष्णु)
- पंचानन ≈ पाँच हैँ आनन जिसके(शिव)
- पद्मासना ≈ पद्म (कमल) है आसन जिसका(लक्ष्मी)
- मनोज ≈ मन से जन्म लेने वाला(कामदेव)
- गिरिधर ≈ गिरि को धारण करने वाला(श्रीकृष्ण)
- लम्बोदर ≈ लम्बा है उदर जिसका(गणेश)
- चन्द्रचूड़ ≈ चन्द्रमा है चूड़ (ललाट) पर जिसके(शिव)
- पुण्डरीकाक्ष ≈ पुण्डरीक (कमल) के समान अक्षि (आँखेँ) हैँ जिसकी(विष्णु)
- रघुनन्दन ≈ रघु का नन्दन है जो(राम)
- सूतपुत्र ≈ सूत (सारथी) का पुत्र है जो(कर्ण)
- चन्द्रमौलि ≈ चन्द्र है मौलि (मस्तक) पर जिसके(शिव)
- चतुरानन ≈ चार हैँ आनन (मुँह) जिसके(ब्रह्मा)
- अंजनिनन्दन ≈ अंजनि का नन्दन (पुत्र) है जो(हनुमान)
- वीणावादिनी ≈ वीणा बजाती है जो(सरस्वती)
- नगराज ≈ नग (पहाड़ोँ) का राजा है जो(हिमालय)
- वज्रदन्ती ≈ वज्र के समान दाँत हैँ जिसके(हाथी)
- मारुतिनंदन ≈ मारुति (पवन) का नंदन है जो(हनुमान)
- भूतनाथ ≈ भूतोँ का नाथ है जो(शिव)
- षटपद ≈ छह पैर है जिसके(भौँरा)
- लंकेश ≈ लंका का ईश (स्वामी) है जो(रावण)
- सिन्धुजा ≈ सिन्धु मेँ जन्मी है जो(लक्ष्मी)
- दिनकर ≈ दिन को करता है जो(सूर्य)
- शचिपति ≈ शचि का पति है जो(इन्द्र)
- वसन्तदूत ≈ वसन्त का दूत है जो(कोयल)
- गजानन ≈ गज (हाथी) जैसा मुख है जिसका(गणेश)
- पंकज ≈ पंक् (कीचड़) मेँ जन्म लेता है जो(कमल)
- निशाचर ≈ निशा (रात्रि) मेँ चर (विचरण) करता है जो(राक्षस)
- मीनकेतु ≈ मीन के समान केतु हैँ जिसके(विष्णु)
- नाभिज ≈ नाभि से जन्मा (उत्पन्न) है जो(ब्रह्मा)
- गजवदन ≈ गज जैसा वदन (मुख) है जिसका(गणेश)
- ब्रह्मपुत्र ≈ ब्रह्मा का पुत्र है जो(नारद)
ये भी पढ़ें:
समास के भेद | प्रकार
1. तत्पुरुष समास,
2. कर्मधारय समास,
3. द्विगु समास,
4. द्वंद्व समास,
5. बहुव्रीहि समास,
6. अव्ययीभाव समास,
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